दलित साहित्य क्या है ?

दलित साहित्य क्या है ? अ दलित साहित्य क्या है ? अकसर हम सुनते आ रहे हैं। दलित साहित्य का एक दो पन्ने उलट - पलट कर वर्गवादी, जातिवादी व एक पक्ष की कोटि में खड़ा करना समुचित नहीं हो सकता। इसके लिए सबसे पहले गहन अध्येता बनना पड़ता है। दलित साहित्य में हमें हर जगह समता - बंधुता, भाईचारे की बहुतायत मिलेगी। परंपरा विरोधी स्वर तो होता है लेकिन वह अन्याय पर आक्रोश है। समाज में न्याय स्थापित करने एवं हमारे संकुचित भावधारा को विज्ञान की कोटि में ले आने का प्रयास है। मनुष्य होने की बात है। हर मनुष्य की गरिमा, प्रतिभा, क्षमता को समता के धरातल पर दिखाने का आईना है। दलित साहित्य शिक्षा के क्षेत्र में विस्तार से ले आने की आवश्यकता है। डॉ.कार्तिक चौधरी के शब्दों में देखते हैं कि " लेकिन मुझे लगता है कि दलित साहित्यकार समाज के लिए मनोवैज्ञानिक चिकित्सक से कम भी नहीं हैं जो अपने वैज्ञानिक तथ्यों के माध्यम से व्यवस्था सुधार में लगे हुए हैं। हमें यह जानना होगा वर्षों से चली आ रही खास कर साहित्य की परंपरा में साहित्य के मनोचिकित्सक हमारे दलित साहित्यकार ही हैं, जिन्होंने शब्दों की अवधारणा का वैज्ञानिक धरातल पर परीक्षण कर एक समतामूलक समाज के गठन पर जोड़ दिया हैं। उनके द्वारा बनाई गई परिपाटी मौलिकता के साथ साथ यथार्थ और खुद की जीवन सच्चाई हैं जो साहित्य के जगत में पहले कभी न सोचा गया। सीधे अर्थों में कहे तो साहित्य के आनन्दवादी परम्परा दलित साहित्य ने ही चुनौती दिया है।"

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