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भूख की चोरी

                                          प्रमाण पत्र                                                   मान्य प्रकाशक नमस्कार। ·         यह कथा   मेरी स्वीय रचना है । ·         यह किसी का अनुकरण व अनुवाद नहीं है। ·         अब तक इसे किसी ब्लाग या पत्रिकाओं में प्रकाशित नहीं हुई है। रवींद्र नाथ ।   भूख की चोरी           वातावरण शांत था । कल रात ही बरसात हुई ।पेड़ - पौधे आनंद के साथ देख रहे हैं। पाठशाला का मैदान खेलने केलिए बच्चों को बुला रहा है , इसलिए सभी बच्चे मैदान में हैं। मैदान खुशी से झूम उठ रहा है। अब बच्चों के आनंद की सीमा न था। अब उनको कुछ भी नहीं चाहिए , केवल खेल । मगर सूर्य को खेलने में मन न लगता है। खेल के प्रति रूचि उसमें नहीं है। वह कक्षा में बैठा हुआ है। उसके हाथ में पुस्तक है। पढ़ने की इच्छा मन में भरा हुआ है। कोई अध्यापक अभी तक नहीं आया । वह सरकारी पाठशाला है।कक्षा में अपने साथ प्रकाश भी है। वह अपना बक्स खोलकर इडली खाता है। सूर्य के पेट में आंत्र घूमने लगा। मन को किस तरह मोड़ने पर वह सुनता नहीं , पुस्तक में प्रवेश करता नहीं। वह प्