भूख की चोरी



                                          प्रमाण पत्र
                                                  मान्य प्रकाशक नमस्कार।
·        यह कथा  मेरी स्वीय रचना है ।
·        यह किसी का अनुकरण व अनुवाद नहीं है।
·        अब तक इसे किसी ब्लाग या पत्रिकाओं में प्रकाशित नहीं हुई है।
रवींद्र नाथ ।

 
भूख की चोरी
         वातावरण शांत था । कल रात ही बरसात हुई ।पेड़-पौधे आनंद के साथ देख रहे हैं। पाठशाला का मैदान खेलने केलिए बच्चों को बुला रहा है,इसलिए सभी बच्चे मैदान में हैं। मैदान खुशी से झूम उठ रहा है। अब बच्चों के आनंद की सीमा न था। अब उनको कुछ भी नहीं चाहिए,केवल खेल । मगर सूर्य को खेलने में मन न लगता है। खेल के प्रति रूचि उसमें नहीं है। वह कक्षा में बैठा हुआ है। उसके हाथ में पुस्तक है। पढ़ने की इच्छा मन में भरा हुआ है। कोई अध्यापक अभी तक नहीं आया । वह सरकारी पाठशाला है।कक्षा में अपने साथ प्रकाश भी है। वह अपना बक्स खोलकर इडली खाता है। सूर्य के पेट में आंत्र घूमने लगा। मन को किस तरह मोड़ने पर वह सुनता नहीं,पुस्तक में प्रवेश करता नहीं। वह प्रकाश की बक्स की ओर देखने में मजबूर है। लेकिन प्रकाश मोड़कर अपनी ओर नजर डालता ही नहीं। प्रकाश का सूर्य से कोई काम नहीं । वह बल लगाकर खा रहा है। अभी दो इड़ली बाकी है। उनको खिड़की से बाहर फेंक दिया। बोतल खोलके खूब पानी पिया । अपनी थैली में और भी दो रोटियाँ बाकी है। इंटरवल में खाने को माँ ने रखी है। उनको बाहर निकालकर बड़ी सतृष्णता  देखने लगा । क्या करें पेट में खाली नहीं है। सूर्य की दृष्टि उन रोटियों पर पड़ी।मुँह में जीभ फिरने लगा है। प्रकाश अपने तोंद को फेरते हुए रोटियों को थैली में रखा । बाहर की आवाजें सुनते हुए बाहर की ओर दौड़ा दिया।बच्चे पढ़ाई कमा रहे हैं। प्रश्नों का जवाब लिकना उनको मालूम है। सबको अंक चाहिए। अंक और राँक ही प्रमाणिक को ही सबने मान्यता दी हैं। जीवन को पढ़ना उन्हें मालूम नहीं है।बच्चे को पाठशाला में  दाखिल करने से ही माँ-बाप अपने को भारमुक्त मानते हैं। फिर उसकी ओर कोई नजर ड़ालता ही नहीं।अध्यापक भी न उनको जीवन सिकाते।
                              सूर्य को अपने हाथ के पुस्तक को पढ़ने के बजाय पेट की क्षुधा की पूर्ति करनी है। कल दोपहर कभी पाठशाला में खाया है, वह खाना किस कोने में है पता नहीं। नीरस भी लग रहा है। माँ पाठशाला जाने का मना किया । मन माँ की बात सुनता कहाँ  खाना नहीं तो क्या हुआ उसको पढ़ाई चाहिए। रात को उसकी माँ,बीमार पिता भी नहीं खाये। कुली से माँ ने मूँगफली लायी । उन्हीं को पकाकर रात को खाये हैं।घर में पकाने केलिए कुछ नहीं है। रामय्या ने उस दिन कुली नहीं दिया और एक दिन देगा । अपनी घर की दीन स्थिति किसको बता सकती। पहले से ही किसके हाथ के नीचे हाथ रखनेवाला परिवार नहीं था मगर क्या करें,समय ऐसा आया। माँ-बाप दोनों को हर महीना गोलियों की जरूरत है। धन-दौलत बीमारियों ने खाया है। परिस्थितियाँ मनुष्य को बदल देती हैं। काल का मायाजाल मनुष्य को महान बना देता है,भिखारी बनाता है। चोर,डाकू,हत्यारा भी बनाता है।
                   सूर्य की भूख पूरे शरीर में फैल गया। कक्षा में कोई नहीं है। दृष्टि प्रकाश की थैली पर पड़ी ।उसकी थैली से रोटी निकालकर खाने को मन कहता है। बुद्धि तर्क करता है यह गलत है। कोई आया तो मान-मर्यादा जल जायेगा। आखिर मन ही जीत गया। रोटी निकालकर जल्दी-जल्दी खाने लगा। गला उसे पकड़ता है। वह भी कहता है तुम गलत कर रहे हो। भूख को ये सभी मालूम नहीं है,दौड़नेवाली आंत्र को समझ में नहीं आता। थोड़ा पानी पीकर फिर से रोटी अंदर घुसा दिया। बुद्धि का अनुमान सच हुआ। इतने में प्रकाश वापस आ गया। संदेह भरी दृष्टि से  सूर्य की ओर ताकता हुआ अपनी थैली के पास गया । थैली में देखा तो उसमें एक रोटी नहीं है। वह तय कर लिया कि वह अपनी रोटी है। " ! तूने मेरी रोटी चोरी करके खा रहे हो ? .....रमणा सर को आने दो ....." प्रकाश जोर से बोल रहा है। अब सूर्य का प्राण दौड़ने लगा है। वह ऐसा ही ठिठक कर खड़ा रह गया। रमणा सर का नाम कान में पड़ते ही रोटी गले से नीचे की ओर चलना भूल गयी। मुँह में कोई चाल-चलन नहीं है। बाकी रोटी प्रकाश की थैली में रखने को आगे बढ़ा। " लार की रोटी मेरी थैली के अंदर मत रखना ? नया रोटी खरीद कर दो । ." प्रकाश ने जिद की बातें कीं । उसके पास पैसे कहाँ है । एक महीने से वही अचकन पहना हुआ है। हर दो दिन के एकबार धोकर पहनने से उसका असली  रंग छोड़कर अपना अलग रंग धारण कर लिया। उसके साथ कोई बात नहीं है । उसे निस्तेज घेर लिया है।
                         नौ बजे हो रहा है। " रमणा सर आ रहे हैं .... " कहते हुए  सभी बच्चे अपनी-अपनी कक्षा की ओर दौड़ लगाये हैं। कक्षा में सूर्य खड़ा हुआ है बगल में प्रकाश है। अंदर आनेवाले बच्चे उनको देखकर शांत हो जा रहे हैं।सभी प्रश्नभरी दृष्टि से उनकी ओर निहार रहे हैं। बाकी कक्षाओं में शोर मचा हुआ है। लेकिन आठवीं कक्षा एेसा लग रहा है कि इसमें कोई छात्र नहीं है। शून्यता उस कक्षा को घेर ली है। "कक्षा में कोई न होते देख इसने चोरी से मेरी रोटी खायी है। "चिल्लाते हुए प्रकाश ने कहा। " किसी ने परसों मेरी थैली से पैसे चुरा लिया है.." सुरेंद्र ने कहा। " मेरी हिंदी अभ्यास पुस्तिका दिखायी नहीं दे रही है। " नरेश सूर्य की ओर संदेह भरी दृष्टि से देखता हुआ कह रहा है। किसी को भी मान से भी अधिक  प्राण है। रमण सर को बताने केलिए एक के साथ एक दफ्तर की ओर चल पड़ा है।
                            " ..रे ! सर  तुमको बुलाता है । " कहते हुए  प्रकाश,सुरेंद्र,नरेश खुशी-खुशी से अंदर आया।
   सूर्य की दृष्टि जमीन पर है। कमरे के बाहर पौधों को देखता हुआ आ रहा है। वे पौधे कुचले हुए हैं। वे पौधे उसीने बोया है। पर्यावरण के बारे में लिखते हैं ,सौ प्रतिशत अंक पाते हैं। पेड़ पौधों के बारे में प्रतिज्ञा करते हैं। आचरण में कितने लोग पालन  करते हैं । वह दिल से पढ़ता है,आचरण की दृष्टि से देखता है।पाठशाला में दाखिल होने के बाद उसने कई पौधे बो दिया है। पुस्तकों के साथ पेड़-पौधों को ज्यादा प्यार करता है। वे ही उसके मित्र हैं। पढाई में उसको अंक के अतिरिक्त जीवन ही दिखाई देता है। पुस्तक और पेड़ ही उसकी आस्था है। कदम पर कदम लेते दफ्तर में पहुँचता रहा,बाकी छात्र उसको अपराधी कैदी की तरह देखता है। भय से चाँद जैसा मुँह कांतिहीन दिखाई दे रहा है। अपने हाथ विनम्रता से गुरू का गौरव स्वीकार करते पहले बाँधे हुए हैं।
                                     " मैंने समझा कि तू अच्छा लड़का है। अच्छी तरह पढ़नेवाला है । चोरी भी करता है क्या ? "सूर्य को देखते ही रमण सर ने कहा।
"नहीं सर मैं चोर नहीं हूँ.... " रोते हुए सूर्य ने कहा ।
प्रकाश को दिखाते हुए " इसकी थैली से रोटी लेकर तू ने खाया नहीं ?  रमणा सर ने  पूछा । 
"हाँ ! सर खाया हूँ .." प्रकाश ने धीमी आवाज के साथ बोला । 
"उसकी अनुमति के बिना रोटी खाना चोरी के बिना क्या है ?" रमणा सर ने धमका दिया। 
"भूख लगी ...तो... खाया हूँ......"  आँसू बहाते हुए सूर्य ने कहा ।
 "भूख लगी तो चोरी करता है।"  सर ने आवाज उठाया । सूर्य सिर झुकाकर रोता रहा। सरने मसझा कि उसने झूठ बोल रहा है। 
"सभी बाहर खेल रहे तो तू अंदर क्या करता रे ? ये कह रहे हैं कि रोज ऐसा ही बैठता है ? "  सूर्य ने कहा ।
"मुझे खेलना पसंद नहीं है सर..  " सूर्य ने कहा ।
"क्या कक्षा में बैठे चोरी करता रहता है ?" सरने व्यंग्य को जोड़ते हुए पूछा।
"मैंने किसी का चोरी नहीं किया  सर .." आँसू पोंछते हुए सूर्य ने कहा।
अभी स्वीकार किया कि तूने इसका रोटी खायी है .. इतने में रंग बदलता रे.. सर बोला।
सिर झुकाकर सोचने लगा कि ये सीतय्या के बगीचे से अमरूद,आम जितने बार चुराकर खा लिये हैं।
क्या रे चुप हो !?..तुझे कोई डर भी नहीं…!! लकड़ी की तलाश में इधर-उधर घूमता है। उसे आर.टी. .एक्ट तो याद आयी। फिर से बोला .   जा..घर जाके  ..तेरे बॉप को बुलाकर आओ।सर ने हुक्म किया।
मेरा पापा नहीं आ सकता सर.. दीन स्वर में उसने कहा।
क्यों नहीं आ सकता..! ”सर ने पूछा
पलंग से उठ नहीं सकता,हाथ-पैर काम नहीं कर सकता सर ....बीमार पड़ा है।सूर्य ने जवाब दिया।
हाँ ! अच्छा तो फिर अपनी माँ को बुलाकर आ ..” संदेहभरी दृष्टि से सर ने कहा।
मेरी माँ मजदूर करने गयी है..सूर्य बोला ।
क्या ! स्कूल मजाक लगता रे! टी.सी दिलवा दूँगा तुझे.!” क्रोध से सर ने कहा।
सर कल मैं इनकी रोटी को खरीदकर देता हूँ। सर टी.सी मत दीजिए। मैं पढ़ना चाहता हूँ। सूर्य फूट-फूटकर रोने लगता है। सूर्य की आँसू सर को शांत किया। सर ने कहा हाँ! कल इनकी रोटी खरीदकर दे दो। आज से किसी का चोरी नहीं करना समझे.!”
प्रकाश की ओर मुड़कर कहा रे ! कल खरीदकर दे देगा। यह विषय घर में न कहना ..चल कक्षा को..सर ने राजी की बात की। पिछले महीने किसीने इसको मारा है।यह विषय सीधा माँ के पास पहँचा दिया। इस पर उसने स्कूल में कितना गड़बड़ किया।उसको समझाने केलिए सिर का प्राण पूँछ पर आ गया। समय बदल गया सभी अपने-अपने तरफ से सोच रहे हैं किसी ने किसी का सुनता नहीं। टीचर की वेल्यू दिन ब दिन बिगड़ता जा रहा है।
      गालों पर आँसू की धारा को पोंछते हुए सूर्य कक्षा में जाकर बैठ गया। पूरा दिन उस पीड़ा में डुबा हुआ है। पाठशाला के दोपहर का भोजन अपने को बचा रहा है। हर दिन दो बार माँगकर खाता है। बाकी छात्र उसे अलग नजर से देखता है। रसोईवाला भी आँखें फाड़कर देखता है। जो भी समझे इसका परवाह नहीं, पेटभी खानी है।
परसों रोटी लेकर आया। उस दिन भी सूर्य में कोई जोश दिखाई नहीं दिया। रोटी प्रकाश को देकर दीर्घ साँस ले लिया। पहला सत्र गणित अध्यापक का है। कल सायंकाल ही अपनी सहपाठी से गृहकार्य जानकर पूरा किया। मगर हाजिर तालिका में अनुपस्थित पड़ा हुआ है।हाजिर लगाते समय अनुपस्थित दिखा दिया तो व्यंग्य जोड़के पूछा कि कल आप कहाँ गया सर?”
मेरी माँ के साथ मूँगफली तोड़ने गया था सर । नीरस स्वर में सूर्य ने कहा।
कहीं भी जाते हैं ..स्कूल छोड़कर जाने से इधर पढ़ाई कौन करेगा..!महाजन..!? आनेवाले अधिकारी ये सभी नहीं देखते ! हमारे सिर पर चढ़ते हैं। उनको अंक चाहिए । वे प्रइवेट सकूलों से तुलना करके देखते हैं। उनको ये सभी नहीं चाहिए। बच्चा किस मोहल्ले से आता है। उसको पारिवारिक मदद कहाँ तक मिलता है। ये सभी नहीं देखते। क्या हमारे साथ कोई मंत्र दंड है,सभी को अच्छे अंक दिलाने का। हम भी मनुष्य हैं। हमारा नतीजा ऐसा है क्या करें..!” छोटी सी उपन्यास से श्यामपट पर समस्या डाल दिया। सभी को अपने अभ्यास पुस्तिका में लिखने का आदेश दिया। कुछ देर बाद पूछा कि क्या सबने लिख लिया है ?” सर ने सबकी ओर देखा। सभी हाँबोले। सूर्य अभी तक लिख नहीं पाया। आँखें बँध करता हुआ मेज पर सिर झुका रहा है।
सर की दृष्टि सूर्य पर पड़ी । कक्षा पर सही नहीं आता,इसके साथ कक्षा पर सोना भी है  ! अच्छा है रे  ! तुम्हारी पढ़ाई क्रोध से कहता हुआ सीधा आकर पीठ पर मारा । पीठ उसे गरम लगा तो हाथ पकड़कर कहा रे  इसको बुखार आया है। डबड़बाई आँखों से सूर्य झूमता हुआ सर की ओर देखा।उठो ! घर चलो !बुखार ज्यादा है "सरने कहा।
           सूर्य कलम को पकड़ता है श्यामपट की ओर देखता है। लिखने की कोशिश करता है। लेकिन कलम चल नहीं पाता। वह ऐसा ही मेज पर सिर झुका दिया। सर ने एक लड़के को भेजकर गोली मँगवा लिया। उसको डाल दिया। एक घंटे के बाद बुखार तो कम हुई मगर नीरस नहीं चला। अध्यापक घर जाने केलिए जोर देने पर वह जाने को तैयार नहीं है। उसके मन में पढ़ाई के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। आज के पाठ कैसा यह उसके मन में दौड़ रहा है। कल के पाठ भी खो दिया है। वह फिर से पाठ को खोने में तैयार नहीं है। वह वास्तविक पढ़ाई कर रहा है। उसके साथ कटु अनुभव हैं। अनुभव से बढ़कर कौन सा ज्ञान बढ़ा हो सकता है।
ऊँ ऊँ ऊँ ऊँ ऊँ ऊँ ऊँ ऊँ ऊँ ऊँ ऊँ

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