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मेरा जीवन

      मेरा जीवन मेरे मन की आशा - आकांक्षाएँ .. जाति ने बरबाद किया है. पैसे का अभाव मुझे झुका दिया.. सबके सामने झुका दिया. सबको मानने को तैयार किया. मेरी सोच का कोई स्थान न रहा पीड़ा मुझे सताने लगी... मेरी आँखों में आँसू भी न रहने दिया. हार गया जीवन में .... सबसे दूर ...सबको पार... मेरा लोक अलग हो गया. दुनिया से मेरा बंधन टूट गया. कमरे से बाहर आने का मन नहीं लगता.. चिंतन-मनन जाति-धर्म का... मानव जीवन का... नरक का द्वार दिखा दिया.   भगवान का दर्शन पाने .. जप-तप शुरू किया.. हताश-बेहोश होता गया.. मन के विकार ..रूप धारण किया.. भगवान को देखने लगा.. सबको पागलपन दिखाई दिया.  अस्पताल में चिकित्सा..  फिर से जिंदगानी शुरू हुई. अभी भी..मुझे जाति-धर्म,वित्त की असमानता... अपहास्य करता है... तुम्हारा जीवन यही है . तुम्हारा जीवन यही है.

भगवान सिनेमा देखता है

   भगवान सिनेमा देखता है क्या पढ़ा क्या सीखा जीवन में मैंने हर पल चिंतन-मनन रहा जीने का। मस्तक की पीड़ा मदिरा को बुलाया शरीर की पीड़ा डाक्टर के पास भेजा। कुछ सोचा और कुछ समझा मैंने जाति धर्म अस्वीकार किया हर बार। असमानता का शिकार मेरे सामने जीवन की कल्पना कल्पना ही रहा। धार्मिक क्षेत्रों में विलासिता का नृत्य अपहास्य लग रहा  मानव धर्म का। इंसान की इज्जत लाखों-करोड़ों  रूपये में हार कर भाग गये मानवता मंदिर से। श्रम और भुजबल बुद्धि के शोषण में न्याय धर्म चलता रहा कुटिलों के पक्ष में। स्वार्थ का बड़ा आकार भगवान के रूप में अर्चना-पूजना की अलग रीति अपनेवालों का।  भोग  लालसता रहा सभ्यता के नाम पर निज जीवि का ह्रास होता रहा जिंदगी का।  होंठों पे सचाई है,अंतरंग में कहीं नहीं जीवन क्षेत्र रंग स्थल का रूप धारण किया। एकसे बढ़कर और एक है आस्कार पाने का भगवान सिनेमा देखता है अपनी कोठी में मजा लेता है अपनी सृष्टि में इस सृष्टि का।
                                              हमारा धर्म भारत में वर्ण व्यवस्था की शुरुआत कब से हुई ..आज के जमाने में सोचने की बात है। ऋग्वेद के पुरुष सूक्त में पहली बार वर्ण व्यवस्था का उल्लेख मिलता है। प्रो.कॉलब्रूक,मैक्स मूलर प्रो.वेबर जैसे पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार पुरुष सूक्त तो केवल क्षेपक मात्र है। कुछ विद्वानों की मान्यता है कि पुरुष सूक्त अद्वितीय अंग है। हमारे प्रथम राष्ट्रपति डॉ.सर्वेपल्ली राधकृष्ण के अनुसार वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति दैविक है। ब्रह्मा ने इनकी सृष्टि की तथा चार वर्णों को गुण कर्म के आधार पर कर्तव्य निर्धारित किये। डॉ. बाबा साहब अंबेड्कर इसके तिरस्कार में मानते हैं कि आर्यों के समाज के प्रारंभ में केवल तीन ही वर्ग थे ब्राह्मण,क्षत्रिय और वैश्य। शूद्र व चौथा वर्ण तो क्षत्रियों का आवश्यक अंग था।सामाजिक प्रतिष्ठा केलिए ब्राह्मण तथा क्षत्रियों के बीच के संघर्ष में जो हार गया। वही बाद में शूद्र कहने लगे थे। तेलुगु के वेमना जैसे लोक कवि के पद्यों में कई पद्य क्षेपक का संदेह व्यक्त किया जा रहा है। 2004 में संसद में सूचना और प्रसार मंत्री ने यह

మనం... మన మతం

మనం... మన మతం మతమంటే ఏమిటో ...జాతియంటే..తెలియకుండానే మనమూ గుడ్డిగానే పరిగెడుతున్నామా..మత భేదం లేక సర్వ మానవాళికి స్వేచ్చాయుత వాతావరణాన్ని కల్పించిన హిందూ దేశంలో మత మౌఢ్యాన్ని సృష్ఠంచిందెవరు...విభిన్నమైన పద్దతుల్లో సాధనా పరులై స్త్రీలను,శ్రామికులను రైతులను అగ్ర భాగాన నిల్పి సర్వ మానవ సౌభ్రాతృత్వంతో దేశ-దేశాలలో కీర్తి గడించిన ఈ ఉపఖండం పునర్వైభవాన్ని పొందడానికి సమసమాజాన్ని సాధించడానికి కృషి సల్పడం పుణ్య భూమిలో జన్మించిన ప్రతి ఒక్కరి కర్తవ్యం.దీనికై ప్రతి ఒక్కరూ సత్యాన్ని తెలుసుకోవాలి...వాస్తవాల్ని వెలికితీయాలి.స్వంత మేలు కొంత మానుకొని పొరుగువానికి సాయపడమనే వాక్యాల్ని నెమరేసుకుంటూ ముందుకు నడవాలి. భగవద్గీతను జాతీయ గ్రంథంగా గుర్తించడానికి ప్రయత్నాలు జరుగుతున్న నేపథ్యంలో ఉత్తర భారతంలో వాడి వేడి చర్చ మెుదలయింది.ప్రముఖ దళిత కవి,రచయుత కన్వల్ భారతి గారు ఆక్షేపిస్తూ భగవద్గీతలోని కొన్ని అంశాలు లేవదీశారు. మాంహి పార్థ ! వ్యపాశ్రిత్యయే పిస్తు పాప యోనయ:I స్త్రీయో వైశ్యాస్తథా శూద్రాపియాన్తి పరాం గతిమ్II తా  .పాప జన్మము కలవారైన స్త్రీలు,వైశ్యులు,శూద్రులు మెుదలైన వారందరు నన్ను     శ

यही है हमारा धर्म....

                                यही है हमारा धर्म....             हर हफ्ते की तरह आज भी गुरुवार का दिन आया है। षिरिड़ि साई से अनुरक्त एक दलित भक्त ने निष्ठा से पूजा करके अपने घर से प्रसाद लाकर दफ्तर के सभी अफ़सरों के सामने रख दिया। कुछ सवर्ण जाति के षिरिड़ि साई भक्तों ने उस प्रसाद को स्वीकार करने में हिचकिचाने लगे हैं। वे हर दिन दफ्तर में इतने जोरदार से साई का नाम लेते हैं और गीत भी गाते रहते हैं। आज वे ही साई बाबा के प्रसाद लेने में क्यों पीछे भाग रहे हैं। भक्ति का क्या अर्थ है इनकी दृष्टि में। वह दलित भक्त पढ़ा-लिखा है,सहचर नौकर है। यह उन सवर्णों के मानसिक पटल पर अंकित जाति भेद की रूप रेखाएँ उनके मुँह पर परिलक्षित होने लगा है। साई बाबा के जीवन को इन भक्तों ने परखा नहीं। पुस्तकों में देखा है लेकिन अपने मानसिकपटल पर नहीं है। इसलिए इनके आचरण में गिरगिट की तरह रंग बदलने लगे हैं। धर्म के क्षेत्र में इनकी द्वैमानसिकता का संचार हो रहा है। इनकी भक्ति बगुल भक्ति के अतिरिक्त और कुछ नहीं होगा।        भगवान को सर्व व्यापी माननेवाले हमारी संस्कृति में कुत्सित धर्म,कुटिल जाति भेद की वि

भूख की चोरी

                                          प्रमाण पत्र                                                   मान्य प्रकाशक नमस्कार। ·         यह कथा   मेरी स्वीय रचना है । ·         यह किसी का अनुकरण व अनुवाद नहीं है। ·         अब तक इसे किसी ब्लाग या पत्रिकाओं में प्रकाशित नहीं हुई है। रवींद्र नाथ ।   भूख की चोरी           वातावरण शांत था । कल रात ही बरसात हुई ।पेड़ - पौधे आनंद के साथ देख रहे हैं। पाठशाला का मैदान खेलने केलिए बच्चों को बुला रहा है , इसलिए सभी बच्चे मैदान में हैं। मैदान खुशी से झूम उठ रहा है। अब बच्चों के आनंद की सीमा न था। अब उनको कुछ भी नहीं चाहिए , केवल खेल । मगर सूर्य को खेलने में मन न लगता है। खेल के प्रति रूचि उसमें नहीं है। वह कक्षा में बैठा हुआ है। उसके हाथ में पुस्तक है। पढ़ने की इच्छा मन में भरा हुआ है। कोई अध्यापक अभी तक नहीं आया । वह सरकारी पाठशाला है।कक्षा में अपने साथ प्रकाश भी है। वह अपना बक्स खोलकर इडली खाता है। सूर्य के पेट में आंत्र घूमने लगा। मन को किस तरह मोड़ने पर वह सुनता नहीं , पुस्तक में प्रवेश करता नहीं। वह प्