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Showing posts from July, 2015

यही हमारा जीवन !

यही हमारा जीवन ! युग बीतते जा रहे हैं मगर मानव के स्वार्थ चिंतन में बदलाव नहीं आया । जाति का प्रेम नस - नस में अहं की भूमिका निभाता रहा । अपने बढाई के दौड - धूप में मनुष्य का होना भूल गया । बढ - बढ की बातें धर्म का आचरण में अंगडाइयाँ लेता । यही असली जीवन मर्म का हमारे इस गौरवमय समाज का । आचार - संप्रदाय को भूलता नहीं असल में अपने बारे में अकल की दुहाइयाँ देता । जिंदगी का सही कोश बन नहीं पाता किसी का बना सत्य अपना लेता अपना सच्चा धर्म मान लेता उसी कुएँ का अंधा बन जाता । दूसरे के धर्म कोखला मानता हायरे ! जिंदगी का असला गूँगा हो जाता । आलसी जीवन यह हमारे का । दूसरे के पैसे से मौज लेनेवाले का बडी मूर्खता का जीवन । निरंतर चिंतन की आइने में देखें असली वस्तु का अवबोध होवें । सबको पार, सबसे दूर मन में रहें ज्ञान शक्ति के अनंताकार की अनुभूति बंधन की जडमति होती सुजाति ।

मैं वही हिंदू हूँ

मैं वही हिंदू हूँ    पी.रवींद्र नाथ जाति-धर्म हीन समाज का सर्व धर्म मान्य अनादि का लोक हितकारि उसी हिंदू मैं । ऊँच-नीच,अमीर-गरीब का भेद-विभेद नहीं कहीं का मिल-जुल रहते जन-जन वहीं लोक हितकारि उसी हिंदू मैं । समता-ममता पूरित जीवन फूलता-फलता मस्तक पावन सभ्य समाज संसार में महान लोक हितकारि उसी हिंदू मैं । आस्तिक-नास्तिक का भेद नहीं दीन-हीन,पीड़ित जन कोई नहीं स्वतंत्र वायु का सेवन करते आजादी का अखंड आनंद लेते लोक हितकारि उसी हिंदू मैं । मंत्र-तंत्र का अंध विश्वास नहीं धर्म के नाम पर अनाचार नहीं वर्ण-वर्ग जातीय अभिमान नहीं हिंदू समाज की गरिमा यहीं लोक हितकारि उसी हिंदू मैं । सहोदर समन्वय सभी मानव का विश्व कल्याण की भव्य भावना मानवता के महानतम गुणों का आभूषित मानवीय मूल्यों का लोक हितकारि उसी हिंदू मैं ।

क्या बनती ?

        क्या बनती ?                                                                                         पी.रवींद्र नाथ मधुर पदमय विनोदिनी बन पंड़ित जनहृदयधारी तुम । अपलक इन नयनों में तू अश्रुकण बन कहते जीवन ? सुंदर-मधुर कविता होकर परिजन हित चरते राजते ? पीड़ित,दु खित,शोषित जन में जीवन कोमल रागिनी बनती ? सभ्य समाज से दूषित नर के बेघर,चादर हीन कटु जिंदगी वर्ण-जाति-धर्म का जहर जाल शास्त्र-संप्रदाय की कुटिल नीति शाप जीवन प्रदान किया रे ! मुक्ति का उपाय सूझती कराती  ?

మన గోదావరి

                                   మన గోదావరి                     రచన : పైడాల రవీంద్ర నాథ్. నాసికయందు జననమై.. భారతావనికి ముద్దు బిడ్డవై... దివ్యకీర్తిని దాల్చిన ..మనోహరి మన గోదావరి. పురాణేతిహాసాలలో ... తన స్థానము నిలుపుకొని.. ఎందరో కవుల చేత ..కొనియాడబడుచున్న.. ఘనపాటి మన గోదావరి. నూతన వధూవరులనాశీర్వదిస్తూ... మన సంస్కృతి పరంపరలో.. మన జీవన పథంలో.. ముడిపడి ఒలరారుచున్న .. మహోన్నతి మన గోదావరి. గౌతమ మహర్షి తపో సంపన్నతగా... లోకక్షేమమందినట్టి..సకలజీవికాధారమైనట్టి.. నిరంతర వాహిని ..మన గోదావరి. ఏడుపాయలుగా మారి ..సప్తర్షుల తేజమై.. సప్తలోకాల దివ్యానందమై..మానవాళి చెంతచేరిన.. జీవనాద వినోదిని ..మన గోదావరి. తెలుగువెలుగై..భక్తి తత్వమై... అందరి గుండెల్లో ..ఆహ్లాదమై.. ఆత్మానందమై...పుష్కర శోభయైన.. పుణ్యమూర్తి ..మన గోదావరి. దేశానికే అన్నపూర్ణగా... తెలుగు ప్రదేశాన్ని నిలుపుటలో... తనదైన పాత్ర నొందినట్టిదే.. మన పొగడ్త ఏపాటిదౌనో... ధనమైన మన గోదావరి.