समानता

ये नहीं जानते 

समानता का अर्थ

अपनी भूख मिटाने की

रोजी - रोटी की तलाश है

धूप - छाह भूलकर

सुबह से शाम तक

अपने पेट को दबाते

अश्रुजल में डूबते 

पसीने में भीगते

दुःख - दर्द, पीड़ा - व्यथा में

अपनी - अपनी दौड़ है।


कभी नहीं मानेंगे वे

समता - ममता, भाईचारा

इंसानियत की गरिमा 

वर्ण, वर्ग, नस्ल को फैलाते

जाति - धर्म को ही श्रेष्ठ मानते 

सालों का यह छल - कपट

हर जगह जारी है

दूसरे करतूत को

अपने पल्ले में लेते

आराम की छाया में मशगूल होते

इनकी अपनी दर्जा है।


हम अक्षरवाले, स्याही के अधिकारी

सत्पथ के ईज़ाद के जिम्मेदार हैं

समतल के चिंतन में 

वैश्विक चेतना का चेहरा

हर कोपलें में भर दें

रंग - बिरंगे उपवन में

सहकारिता की हरियाली भर दें

सामूहिक तत्व में

स्वार्थ का चिंतन भस्म करा दें

भोग को, रोग को

मिटाने का ईजाद दें।

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