मेरी भोली माँ पगडाला रवींद्रनाथ पलंग पर बैठा मैं पुस्तक पढ़ रहा था । परीक्षाओं की तैयारी में संलग्न था। घंटी बजाते हुए एक ज्योतिषी ने मेरे पास आकर कहा- "तुम मुसीबतों में फँसनेवाले हो । तुम नीचे...
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भगवान शंकर भटकता है
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भगवान शंकर भटकता है पी.रवींद्रनाथ भगवान शंकर भटकता है दिशाहीन निशावान अहं की छाया में, मोह की माया में गलती पर गलती करता हाथ मलता रहता । संस्कार कहता नमस्कार भूलता काम नाम बिठाता । सबमें रहता अपने को पराया समझता आलसी की ओड़ में अथक परिश्रमी मानता । जाति-धर्म-वर्ण-वर्गों के साथ बाँटता हमेशा हाथ सबका मालिक समझता गली-गली में गालियाँ देता ।