मेरी भोली माँ

                                                                             पगडाला रवींद्रनाथ

                         पलंग पर बैठा मैं पुस्तक पढ़ रहा था । परीक्षाओं की तैयारी में संलग्न था। घंटी बजाते हुए एक ज्योतिषी ने मेरे पास आकर कहा- "तुम मुसीबतों में फँसनेवाले हो । तुम  नीचे गिरोगे,माता अभी तक झूठ नहीं बोली है।" इसकी घंटी बजाना मेरे लिए घृणा का भाव झलक आता था । इनकी झूठी बातें क्रोध को तेल लगाता था । मैं ने जल भुनकर चिड़-चिड़ा सा हो जाता था ।
"जिंदगी बिताना सीख लिये हैं, लोगों को ठगते-फिरते ?" मैंने आवाज उठायी ।
मेरी माँ बर्तन धोना छोड़कर वहाँ आयी । मेरी माँ को देखते ही उस ज्योतिषी के गले में बल  बढ़ने लगा । वह बोलने लगा -"माँ जी ! बेटे को एक शैतान पकड़ लिया है ।वह उसको नीचे गिरानेवाला है ।अच्छे पढ़नेवाले इस बच्चे को देख …  । शैतान उसको सता रहा है । "
माँ ने मुझपर इतनी आशाएँ रखी हैं । वह किस तरह का भी कष्ट मुझ पर आने का सहनती नहीं । माँ उस ज्योतिषी से बोली-"अब क्या करना है ,शैतान से मेरे बच्चे को कैसे बचाना है ? थोड़ा बताकर   पुण्य का सुख पाइए । "
"माँ इसकी बातों पर विश्वास नहीं करना है । यह झूठ बोलता है ।इसको जाने दो । " माँ को समझाते हुए मैंने कहा ।
" देखो माँ जी ! शैतान प्यारी भोली लड़के से किस तरह झूठ बुलवाता है ।  इसलिए मैं कहता हूँ कि जल्दी इस शैतान से बेटे की मुक्ति कराओ ।"ज्योतिषी ने  अपनी बातों से माँ को अपनी ओर आकृष्ट करने का प्रयास किया  ।
अब मुझे बोलने का  अवसर मिल नहीं पाया । माँ  ने उसकी बातों पर विश्वास करने लगी । उसने बातों का माया जाल सीखा है । माँ उसकी बातें सुनते हुए वास्तविकता से दूर हटने लगी । अब मेरी एक बात भी सुनती ही    नहीं । मेरी देखभाल अपना प्रथम धर्म मानती । शैतान को दूर करने का  मोल-तौल शुरू हुआ । एक मुर्गा तथा दस हजार रूपये वह मांगने लगा । माँ एक सौ सोलह रूपये देने की बात कहती । दोनों अपनी-अपनी बात पर अड़िग रहे । धोखेबाजी असलियत के सामने अवश्य झुकना पड़ता है । इसलिए माँ की बात मानने को तैैयार हुआ । बिना मुर्गे के चार सौ रूपये पर राजी हो गया । मुर्गा उसी का  है ,जो मुर्गे के रक्त में तावीज़ डुबाना है। मैं माथे पर हाथ रखकर विचार में डुबा था । माँ मेरी ओर सहानुभूति से देख रही थी ।
"ओम   भम -भम शैतान !  लड़के को छोड़कर बाहर आ जाओ।    नहीं तो तुम्हें भष्म कर डालूँगा । वह कुछ अपने मन में फुस-फुसाने लगा । एक बार उँगलियाँ हल्दी में रखता है तो दूसरी बार चूने में । अब उँगलियाँ पानी का स्पर्स कर दोनों उँगलियाँ मलता रहा तो उन में से लाल रंग निकलने लगा ।
"देखो तुम्हारे शैतान का । "वह ज्योतिषी बोलता हुआ अपनी थैली से एक छोटे  मुर्गे को बाहर निकाला । उनकी पंखों को दूसरी ओर मोड़ दिया । एक सुई से उस पर छोटी घात किया ।एक तावीज लेकर बहनेवाली रक्त उस पर लगा लिया। फिर से मुर्गे को थैली के अंदर डाल दिया । माँ केलिए ये सभी मुझे सहना पड़ा ।
मैंने तावीज को हाथ पर बाँधने का आग्रह किया ।
"माँ जी यह तावीज हाथ पर बाँधने का नहीं,कमर पर बाँधनी है । नहीं तो बड़ा दोष आ जायेगा । " वह कहने लगा।
माँ मेरी ओर देखी और बोली -"तुम अभी भी बच्चे हो।  तुमको कुछ भी भेद मालूम नहीं । मेरी बात मानकर उसकी बातें मानो ।" माँ की ये बातें मेरे मुँह पर ताला लगायी ।
क्या करें। तावीज़ मेरे कमर पर बाँध दी गयी । माँ से पैसे लेकर वह आनंद के साथ चला गया । माँ भी खुशी थी कि मुझे पकड़कर बैठनेवाली शैतान से मैं मुक्त होगया।
अब मैं सायंकाल सात बजे स्नान केलिए गुसलखाने में जाकर उस तावीज को जाँच कर देखा तो मालूम हुआ कि वह तावीज एक छोटी लकड़ी का टुकड़ा है। उस पर पूरा धागा बाँधा हुआ दिखाई पड़ा। बाहर आकर माँ को दिखाया उसको असलियत को मालूम कराया । माँ ने उसको गालियाँ देने लगी । इसी बार से किसी ज्योतिषी को  घर के देहरी पर आने नहीं देती ।

                                                       ************************









Comments

Popular posts from this blog

తెలుసుకుందాం ...చండాలులు ఎవరు? ఎలా ఏర్పడ్డారు?

दलित साहित्य क्या है ?