भगवान शंकर भटकता है
भगवान शंकर भटकता है
पी.रवींद्रनाथ
भगवान शंकर भटकता है
दिशाहीन निशावान
अहं की छाया में,
मोह की माया में
गलती पर गलती करता
हाथ मलता रहता ।
संस्कार कहता नमस्कार भूलता
काम नाम बिठाता ।
सबमें रहता अपने को
पराया समझता
आलसी की ओड़ में
अथक परिश्रमी मानता ।
जाति-धर्म-वर्ण-वर्गों के
साथ
बाँटता हमेशा हाथ
सबका मालिक समझता
गली-गली में गालियाँ देता ।
Comments
Post a Comment