मेरी भोली माँ पगडाला रवींद्रनाथ पलंग पर बैठा मैं पुस्तक पढ़ रहा था । परीक्षाओं की तैयारी में संलग्न था। घंटी बजाते हुए एक ज्योतिषी ने मेरे पास आकर कहा- "तुम मुसीबतों में फँसनेवाले हो । तुम नीचे गिरोगे,माता अभी तक झूठ नहीं बोली है।" इसकी घंटी बजाना मेरे लिए घृणा का भाव झलक आता था । इनकी झूठी बातें क्रोध को तेल लगाता था । मैं ने जल भुनकर चिड़-चिड़ा सा हो जाता था । "जिंदगी बिताना सीख लिये हैं, लोगों को ठगते-फिरते ?" मैंने आवाज उठायी । मेरी माँ बर्तन धोना छोड़कर वहाँ आयी । मेरी माँ को देखते ही उस ज्योतिषी के गले में बल बढ़ने लगा । वह बोलने लगा -"माँ जी ! बेटे को एक शैतान पकड़ लिया है ।वह उसको नीचे गिरानेवाला है ।अच्छे पढ़नेवाले इस बच्चे को देख … । शैतान उसको सता रहा है । " माँ ने मुझपर इतनी आशाएँ रखी हैं । वह किस तरह का भी कष्ट मुझ पर आने का सहनती नहीं । माँ उस ज्योतिषी से बोली-"अब क्या करना ह
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भगवान शंकर भटकता है
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भगवान शंकर भटकता है पी.रवींद्रनाथ भगवान शंकर भटकता है दिशाहीन निशावान अहं की छाया में, मोह की माया में गलती पर गलती करता हाथ मलता रहता । संस्कार कहता नमस्कार भूलता काम नाम बिठाता । सबमें रहता अपने को पराया समझता आलसी की ओड़ में अथक परिश्रमी मानता । जाति-धर्म-वर्ण-वर्गों के साथ बाँटता हमेशा हाथ सबका मालिक समझता गली-गली में गालियाँ देता ।