झूठ

 / झूठ /


हर जगह कई लोग

चुपके - चुपके चलते हैं

अपना मुँह छिपाते वो

धीरे - धीरे चलते हैं

वर्ण-जाति-वर्ग की निशा में 

एक दूसरे को कुचलाते

भेद - विभेद, अहं की आड़ में

असमर्थ बन बैठे हैं मनुष्य

एक दूसरे को जानने में,

समता-ममता-बंधुता-भाईचारा

अक्षरों की दुनिया में

एक सुंदर सपना है

सुख-भोग की चिंता में

एक दूसरे पर छुरी मारते

जिंदगी एक झूठ है।

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