भगवान सिनेमा देखता है

   भगवान सिनेमा देखता है


क्या पढ़ा क्या सीखा जीवन में मैंने
हर पल चिंतन-मनन रहा जीने का।
मस्तक की पीड़ा मदिरा को बुलाया
शरीर की पीड़ा डाक्टर के पास भेजा।
कुछ सोचा और कुछ समझा मैंने
जाति धर्म अस्वीकार किया हर बार।
असमानता का शिकार मेरे सामने
जीवन की कल्पना कल्पना ही रहा।
धार्मिक क्षेत्रों में विलासिता का नृत्य
अपहास्य लग रहा  मानव धर्म का।
इंसान की इज्जत लाखों-करोड़ों  रूपये में
हार कर भाग गये मानवता मंदिर से।
श्रम और भुजबल बुद्धि के शोषण में
न्याय धर्म चलता रहा कुटिलों के पक्ष में।
स्वार्थ का बड़ा आकार भगवान के रूप में
अर्चना-पूजना की अलग रीति अपनेवालों का।
 भोग  लालसता रहा सभ्यता के नाम पर
निज जीवि का ह्रास होता रहा जिंदगी का।
 होंठों पे सचाई है,अंतरंग में कहीं नहीं
जीवन क्षेत्र रंग स्थल का रूप धारण किया।
एकसे बढ़कर और एक है आस्कार पाने का
भगवान सिनेमा देखता है अपनी कोठी में
मजा लेता है अपनी सृष्टि में इस सृष्टि का।


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