वरिष्ठ साहित्यकार दिवंगत सूरजपाल चौहान जी की स्मृति में प्रारंभ किए गए सूरजपाल चौहान साहित्य सृजन सम्मान – 2021 के लिए दस लेखक / संपादकों के नाम की घोषणा की गई -- https://www.gramintvsamachar.com/2021/10/2021_23.html
Posts
झूठ
- Get link
- Other Apps
/ झूठ / हर जगह कई लोग चुपके - चुपके चलते हैं अपना मुँह छिपाते वो धीरे - धीरे चलते हैं वर्ण-जाति-वर्ग की निशा में एक दूसरे को कुचलाते भेद - विभेद, अहं की आड़ में असमर्थ बन बैठे हैं मनुष्य एक दूसरे को जानने में, समता-ममता-बंधुता-भाईचारा अक्षरों की दुनिया में एक सुंदर सपना है सुख-भोग की चिंता में एक दूसरे पर छुरी मारते जिंदगी एक झूठ है।
- Get link
- Other Apps
वैश्वीकरण के दौर में हिंदी पैड़ाला रवींद्रनाथ श्री. वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय तिरूपति, आँध्रप्रदेश । वैश्वीकरण के दौर में हिंदी आज हम वैश्वीकरण की दुनिया में हैं। वैश्वीकरण शब्द अँग्रेजी के ग्लोबलैजेशन शब्द का पर्याय शब्द है। यह दो शब्दों से बना है विश्व + एकीकरण इसका अर्थ है एक छत के नीचे आकर एक दूसरे की मदद करना। देश की अर्थ व्यवस्था को विश्व की अर्थ व्यवस्था के साथ जोड़ना ही वैश्वीकरण या भूमंडलीकरण है। वैश्वीकरण की प्रक्रिया जो है वह बहुत प्राचीन काल की है, इसको हम हड़प्पा सभ्यता के साथ जोड़ते हैं। आधुनिक वैश्वीकरण 1990 के आस- पास से माना जाता है। इस आधुनीकीकरण में लोगों के बीच में न केवल व्यापार का होता है बल्कि अपनी भाषा, खान - पान, आचार- विचार, रहन – सहन आदि का आदान – प्रदान होता है। वैश्वीकरण के दौर में हिंदी की स्थिति पर हम विचार करेंगे। हिंदी भारत की राष्ट्र भाषा, राज भाषा एवं संपर्क भाषा है। सबसे पहले हम इन तीनों शब्दों के अर्थ को भली – भांति समझना आवश्यक है। राष्ट्रभाषा माने देशभाषा, देश में बोली जानेवाली भाषा है। वास्तव में भारत के सभी भाषाएँ राष्ट्रभाषाएँ हैं।
वेदना के शूल
- Get link
- Other Apps
"वेदना के शूल" पैड़ाला रवींद्रनाथ का पहला कविता संग्रह है। कवि का जन्म गरीब दलित परिवार में होने कारण उसके पास भूख, पीड़ा, दमन की अनुभूति है। वेदना एवं पीड़ा की अभिव्यक्ति उसकी कविताओं में देखी जाती है। हिंदी दलित साहित्य के प्रमुख स्तंभ, स्नेहशील स्वभाव के धनी, गहन चिंतक, आदरणीय डॉ.जयप्रकाश कर्दम जी का आशीर्वाद लेकर ' वेदना के शूल ' कविता संग्रह सुधी पाठकों के सामने आया है। मान्य कर्दम महोदय जी के प्रति तहे दिल से हम प्रकट आभार करते हैं। पुस्तक का कवरपेज के साथ एक आकार देकर प्रकाशित करने में योगदान देनेवाले प्रकाशक "आनलाइन गथा" ( ONLINE GATHA ) के प्रति भी हम विशेष आभार प्रकट करते हैं। भूमिका : डॉ.जयप्रकाश कर्दम दलितों का जीवन दुःख और वेदना से भरा है। उनकी ज़िंदगी के रास्तों में सब ओर सर्वत्र वेदना के शूल बिछे हैं जो चुभते हैं और दंश देते हैं। वेदना के शूलों के दंश की पीड़ा उनको कभी सहज नहीं रहने देती, वे निरंतर आहत और असहज रहते हैं। वेदना की अपनी अनुभूति होती है और यह उसे ही होती है जो वेदना के दर्द से गुज़रा हो। दलित वेदना के दर
समानता
- Get link
- Other Apps
ये नहीं जानते समानता का अर्थ अपनी भूख मिटाने की रोजी - रोटी की तलाश है धूप - छाह भूलकर सुबह से शाम तक अपने पेट को दबाते अश्रुजल में डूबते पसीने में भीगते दुःख - दर्द, पीड़ा - व्यथा में अपनी - अपनी दौड़ है। कभी नहीं मानेंगे वे समता - ममता, भाईचारा इंसानियत की गरिमा वर्ण, वर्ग, नस्ल को फैलाते जाति - धर्म को ही श्रेष्ठ मानते सालों का यह छल - कपट हर जगह जारी है दूसरे करतूत को अपने पल्ले में लेते आराम की छाया में मशगूल होते इनकी अपनी दर्जा है। हम अक्षरवाले, स्याही के अधिकारी सत्पथ के ईज़ाद के जिम्मेदार हैं समतल के चिंतन में वैश्विक चेतना का चेहरा हर कोपलें में भर दें रंग - बिरंगे उपवन में सहकारिता की हरियाली भर दें सामूहिक तत्व में स्वार्थ का चिंतन भस्म करा दें भोग को, रोग को मिटाने का ईजाद दें।
అమ్మ నడచిన దారి.....
- Get link
- Other Apps
అమ్మ నడచిన దారి..... ఈ రోజు మాతృ దినోత్సవం. మనసు కాలాలు దాటుకుని వెళ్లి అమ్మను చూస్తోంది. బాల్యంలోకలా... స్మృతి పథంలోకి అడుగులేసుకుంటూ నడచి పోతోంది. .. “ఒరేయ్..చిన్నోడా..! మీ అమ్మ ఇందాక మొగసాల్లోనే కూసోని నీ కోసం చూసి-చూసి పనికి పోయిందిరా..” రాములత్త మాటల్నలా నేను గ్రద్ధ కోడిపిల్లను అమాంతం గాల్లోకి తన్నుకు పోయినట్లు నా చెవుల్లో వేసుకుని రయ్ మని పరుగు తీస్తూ ఇంటి గడప దగ్గరాగాను. పిల్ల చేష్టలు. నేను నిలకడగా నిలచిందెక్కడా.. రెక్కలు కట్టుకోని అలా పరుగులెట్టడమే గదా. అమ్మ ఇంటికి తాళం వేయలేదు. ఊరికే గడికి తాళం తగిలించి పోయింది. హమ్మయ్యా.. ! గడి తీసి తలుపు తోసుకుంటూ లోపలికెళ్లాను. బాగా ఆకలిగా ఉంది. పొయ్యికి కొంచెం ఎత్తులో ఉట్టి ఉంది. ఉట్టి మీద దబరుంది. ఆ ఉట్టి ఎప్పటిదో..! నాకు తెలియదు. సచ్చు తంతితో దాన్నల్లారు. అది మా తాతల కాలం నుండి ఉందని మా అమ్మ అంటూ ఉంటుంది. పొయ్యి పైకెక్కి దబరందుకుని చూస్తే అందులో రాగి సంగటి ముద్దుంది. అందులోకి కాల్చిన మిరపకాయలు, ఉప్పు, ఎర్రగడ్డ, తెల్లగడ్డ, కరివేపాకు, చింతపండుతో చేసిన కారముంది. సంగట్లోకి ఆ కారమంటే నాకు భలే ఇష్టం. ముద్ద పెట్టుక
పుడమి తల్లి దాహం తీరింది
- Get link
- Other Apps
పుడమి తల్లి దాహం తీరింది పుడమి తల్లి దాహం తీరింది జీవరాశి చల్లని శ్వాస తీసుకుంటోంది రైతన్న ఆశల సౌధం నిలచింది నిరాశల సెగలు నేల కూలాయి పచ్చటి సామ్రాజ్యానికి పలుగు పడింది రాజు గుండెలో ఉత్సాహం ఉరకలేస్తోంది కోయిల సెలయేటి పాట కమ్మగా వినిపిస్తోంది జంతుజాలంలో జీవం అడుగులేస్తోంది చెట్టు -చేమలో చిరునవ్వు చిందేస్తోంది క్రిమి-కీటకాదులు కిచకిచలాడుతున్నాయి దశాబ్దంగా దాగిన మూగ మనసు మాట కలుపుతోంది