आलोकन

                                                                                                            रवींद्रनाथ
आजकी रात बहुत देर हुई..
मगर नींद उडा़ दी चिंता ने
मन सोच में डूब गयी है
मस्तिष्क का बोझ लगता
अभी तक जीवन में कुछ नहीं कर पाया
विश्वासों को मानते रूढि में झूझते
जाति- वर्ण के अपमान को सहनते
अपने आपको सीमा रेखाओं में बाँधते
निराशा से आसमान की ओर ताकते
भाग्यवाद के छल में सिकुडते
साधु-संत ,वेदांतियों के यहाँ दौडते
जीवन की आधी रात चली गयी
आँखें मूँद ली ,कांति पुँज मेरे आँखों के सामने
बहुत कुछ दिखाने आयी...
बहुत कुछ बताने आयी...
वह जीवन का सत्य,धर्म का मर्म
कर्म का मूल्य,मानवता का महात्म्य
बाबा साहब की तल्लीनता ,
महान लोगों के दिव्य बोध ,
दलित जीवन की व्यथा,
पीडित शोषित,रूढ्यांधकार में भटके
मेरे बंधु बांधवों का अश्रुनयन
मुझको डुबा दिया,
हाय रे! मेरे गाल पर ये प्यारे
रजत बिंदु इतनी शांति दिलाया
सिर का बोझ गायब ।
आराम की नींद आयी,
आशा का आलोकन
नये कदम का अवलोकन।

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