क्या बनती ?
क्या बनती ?
पी.रवींद्र नाथ
मधुर पदमय विनोदिनी बन
पंड़ित जनहृदयधारी तुम ।
अपलक इन नयनों में तू
अश्रुकण बन कहते जीवन ?
सुंदर-मधुर कविता होकर
परिजन हित चरते राजते ?
पीड़ित,दु खित,शोषित जन में
जीवन कोमल रागिनी बनती ?
सभ्य समाज से दूषित नर के
बेघर,चादर हीन कटु जिंदगी
वर्ण-जाति-धर्म का जहर जाल
शास्त्र-संप्रदाय की कुटिल नीति
शाप जीवन प्रदान किया रे !
मुक्ति का उपाय सूझती कराती ?
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