हम और हमारा समाज

हम और हमारा समाज
जिस तरह का राजा होता है उसी तरह का राज्य होता है। यह प्रचलित कहावत हम सब जानते हैं। यह ठीक साबित होता है कि यदि राजा व नायक टेढे-मेडे रास्ते पर चलता है तो उसके पीछे चलनेवाले भी ऐसा ही चलते हैं। आज हमारे समाज में नायक असत्य वाचन करते,कहते एक करते और एक ,धोखेबाजी का जीवन व्यतीत करने लगता है ।उसके अनुयायी या उसके आदेश पालन करनेवाले नौकर व अधिकारी भी वैसे ही होते हैं। जनता भी एक दूसरे के साथ ऐसा ही व्यवहार करते हैं।
नायकों की स्वार्थ भावना का मूल बीज मनुधर्म शास्त्र में दृष्टिगोचर होता है।इसलिए संविधान के कर्णधार बाबा साहब डॉ.अंबेडकर ने मनुस्मृति को जला दिया था। अनादि काल से हमारे मानसिक पटल पर बैठा हुआ मनुवादी मानसिकता से बच जाने से ही लोक कल्याण होगा। अन्यथा समाज चिंतन की लहरें मानवता को तोडते रहते हैं।
मनुधर्म शास्त्र में समानता तथा मानवता के घात के कई श्लोक मिलते हैं।सवर्णों को अमृत शूद्रों को विष पिलानेवाली है। यह शास्त्र शासकों के जीवन को विलासी तथा स्वार्थी एवं अकर्मण्य बना दिया है।
शूद्रों व साधारण जनता के जीवन दु:खमय एवं दुर्भर बनाया है।
अधर्म,अन्याय का मनुस्मृति के श्लोकों को परखने पर पता चलेगा कि उसका प्रभाव हमारे समाज पर कितना गहरा है।
शतं ब्राह्मणमाक्रूश्य क्षत्रियो दंडमर्हति ।
वैश्योआप्यर्धशतं द्वे शूद्रस्तु वधमर्हसि ।। आठवाँ अध्याय 267 वाँ श्लोक।
अर्थात् ब्राह्मण को कठोर वचन कहने से क्षत्रिय एक सौ पण के वैश्य डेढ व दो सौ पण के दंड योग्य होता है और शूद्र वध के योग्य होता है। शूद्र पर किस तरह का भी सवर्णों को कोई दंड नहीँ होता है।
विषमताभरी और एक श्लोक पर नजर डालें । मनुवादी मानसिकता कितनी भयावह है -
सहासनमभिप्रेप्सुरूत्कृष्टस्यापकृष्टज:।
कटयां कृताङ्गो निर्वास्य: स्फिचंवास्यावकरतयेत् ।
श्लोक 281वही ।
भावार्थ को देखें -जो शूद्र ब्राह्मण के साथ आसान पर बैठना चाहे तो राजा उसकी कमर पर दगवा कर उसे देश से निकलवा दे ,वे उसके चूतड कतरवा ले।
मनुधर्म शास्त्र की विषमता के बीज का यह कांटीले विषवृक्ष आज मानवता को चुभते मार रहा है।
गाँवों व देहातों में इस धर्म व शास्त्र का परोक्ष रूप से अनुसरण हमारे स्वतंत्र भारत में देखा जाता है।
शूद्र जाति को आरक्षण से प्राप्त अधिकार व पद के स्थान पर नीचे बैठाने दृश्य अनेक हैं।उसका कोई बात नहीं होता है।सभी काम उच्च जाति व उच्च वर्ण के लोग ही देखते हैं। ये निर्णय अपने लोगों के अनुकूल ही होता है। इनके रूबाब देख शूद्र व दलित जन हताश होते आ रहे हैं। यदि कोई उच्च जाति व उच्च वर्णों के समान अपने आसन पर बैठता है।उस पर नाराजगी कई रूपों में होता है।कोई न कोई बहाना बनाकर उस पर मारपीट होता है।
मनुधर्म की मानसिकता हिंदू धर्म के जुडी रहने के कारण कल्याणकारी समाज की स्थापना आसानी बात नहीं है। बाबा साहब की रास्ता ही शूद्रों की शरणागति होगी।
लोकासमस्ता सुखिनोभवंतु।

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