दलित जीवन..

दलित जीवन..


दलितों को भूमि दी गयी है पट्टाओं में।
वर्ष बीतते जा रहे हैं मालूम नहीं भूमि है कहाँ ।
दफ्तरों की प्रदक्षिणा से भी साकार हुए नहीं ।
हताश दलितों की व्यथा गाथा हमारे समाज का ।
आरक्षण की वजह से मिली है साम्यवाद के नाम पर।
भोगता कौन हैं आरक्षण विरोधी भी जानते यह तथ्य।
अपने पैरों पर खडे होने की आशा में है आज ये जीवन।
सपने साकार करने दौड-दौडके थक जाते अनादि से।
अभी सवर्णो की मुट्ठी में है आरक्षणों के अधिकार।
फर्श पर बैठे हैं उनका जीवन आजादी के बाद भी ।
आँखवाले की नजर में आता है हरपल मुरझाये गये ,
गाँव के सौंदर्य में शोषण एवं पीडितों की जिंदगी ।
बडे-बडे हवेली वाले की दृष्टि में दलित उन्नत हुए ।
इंदिरा गृह में ये बसते पिछले जमाने में कहीं नहीं।
जूठन खाने को ये तैयार नहीँ हमसे बढ गये हैं ।
सामूहिक होकर आवज उठाने लगे हैं सामाजिकता आ गयी।
राजनैतिक बातें बोल रहे हैं ,सरकारी दफ्तर जानते हैं,
पहले सुबह छ: व सात बजे को काम में आते थे ,
अब आठ-नौ बजे को आ रहे हैं ,बीच-बीच में आराम लेते।
ग्यारह -बारह बजे काम करनेवाले अब आठ बजे से अधिक नहीं ।
काम के बाद पैसे माँगते पहले यह कहाँ था ऐसे ये जूठनवाले ।
फटे- चीथडे के अधनंगे रंगीले कपडे में चमक-धमक दिखाते।
आरक्षण रद्द कर दे इनका ,कई बात करनेलगे मनुवादी।
मानवता भूलके संकुचित स्वार्थ मानसिकता से।
वास्तविकता भूलके अपनी जमींदारी को याद करते।
(आँ.प्र.के कडपा जिले के राजंपेट प्रांत के दलितों की भूमि अनेक वर्षों से कब्जे में है। सरकार की ओर से दी गयी भूमि कागजों में है अपने अनुभव में नहीं।)

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