मेरे विचार में

                    
         

                                      मेरे विचार में


                 कई बार मैं खुलकर यही विचार व्यक्त करते आया हूँ आज वह मान्य वित्तवेत्ता डॉ.अमर्थ्यसेन के वचन देखने से बेहद खुशी हुई कि मेरे विचार में बल है । विद्या और वैद्य ये दोनों व्यक्तियों के हाथों में होना सामाजिक हितकारी नहीं है । व्यष्टि तत्व मनुष्य को मानवता से दूर करती है । सामाजिक हित के सोच के अलावा अपने आय बढाने में ही लग जाती है । इसलिए ये दोनों सरकार के अधीन में होना आवश्यक है । ये मुफ्त में सब लोगों को मिलनी है ताकि मनुष्य एक से ज्ञान पाता है ,दूसरे से स्वस्थता होती है । अपने जीवन का सुखी रास्ता अपनाता है ।वह परिश्रमी रहता है । इससे समाज व देश की भलाई होती है । मुफ्त में जो देना है तो उन असहाय ,विकलांग एवं बूढों को होना है लेकिन ऐसा सुचारू रूप से नहीं हो रहा है । आज हमारे इस सभ्य समाज में भीख माँगते हुए दयनीय जीवन बिताने लोग दिखाई दे रहे हैं । इनकेलिए जवाबदारी आश्रम व्यवस्था का होने से बेहतरीन समाज हो सकता है । इसके विपरीत मुफ्त में रोटी-बोटी दी जाय तो मनुष्य में आलसीपन पैदा होता है । आज अनेकों में यही भावना पनप रही है । बेकार बैठने में सामाजिक विघटनकारी कामों में आज के युवता लगे हुए हैं । यह हमारे समाज केलिए खतरनाक के घंटे हैं । हमें इसका सही पता लगायें कि हमारी व्यवस्था में कहीं लोप है । सही दिशा में चलने व अपना काम ढूँढने में या किसी काम में लगे रहने में क्यों असमर्थ हो रहे हैं । टेडे-मेडे रास्ते अपनाकर जीवन में कटु यातनाएँ भोग रहे हैं । दूसरों के जीवन को बरबाद करने में हिचकिचाते भी नहीं । आजके युवता का दृष्टिकोण सही नहीं होने के कारण प्राइवेट पाठशालाओं के अध्यापक उनको व्यापार के दृष्टिकोण से देख रहे हैं । वही स्वार्थ भावना उनमें भी आ रहा है । समिष्टि के अलावा व्यष्टि चिंतन भरता जा रहा है । उच्चतम सेवा संस्थाओं में पैसे की दौड हो रही है । सरकारी विद्या ,वैद्य संस्थाएँ नाम मात्र बनकर रह गयी हैं । यहाँ अनेक समस्याओं का भरमार है । अनेक खूबियाँ व कमियाँ दिखाई दे रही हैं । इन कमियों को देख अपने बच्चे को परिमाणात्मक शिक्षा दिलाने में प्राइवेट की ओर दौड लग गयी है । सरकारी अस्पतालों में न जाकर प्राइवेट की ओर दौड रहे हैं । सरकारी संस्थाओं के अलावा इन संस्थाओं में कई सुख सुविधाएँ मिल रही हैं । पैसे किसी न किसी काम करके कमाने लोभ में है आजका जमाना ,वह दूसरों के नुकसान क्यों भी न हो जाय कोई परवाह नहीं । जो भूमिहीन,बेघर लोग हैं अनादि काल से शोषण का शिकार हो रहे हैं ,जाति के नाम पर गरल पिलाया जा रहा है उनको आरक्षण की व्यवस्था अवश्य होनी है । वे भी सबके साथ चल सकें । समानता का स्तर हासिल कर सकें । विचारणीय विषय है कि सभी अपना भोग लालसता में डूबने में दौड रहे हैं । व्यवसायी लोगों का मान घट जाने से,श्रम जीवि का मूल्य न होने से सभी सुखमय जीवन की ओर देख रहे हैं । यथा शीघ्र इस बुरी मानसिकता से बाहर आ जाना सबकी भलाई है । अन्यथा समाजिक पतन आगामी पीढी को भोगना पडेगा । कामों में ऊँच नीच का भेद मिटानी है । इसलिए छोटे -छोटे,नीच समझनेवाले कार्य पहले ज्ञानी को करना पडता है । आगे चलनेवाले नायक हाथ बँटानी है । कृषि ,सफाई जो भी नीच कार्य समझ रहे हैं, इस मानसिकता को दूर करने का कदम हरेक पढे लिखे आदमी लेनी है । क्योंकि अच्छे समाज का निर्माण इन्हीं से होता है । साधारण आदमी इनके पीछे चलते हैं । इनको आदर्श मानते हैं । स्वच्छ भारत अभियान कार्यक्रम सुविचार है । इस तरह के और भी कार्य संपन्न करने की दिशा में आगे बढनी है।

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