यह क्या है ? अभी...भी ??
यह क्या है ? अभी...भी ??
कहीं खेत में गुजरा,
कहीं अपने ऊपर छाया पडी ।
अनुनित्य हमारे समाज में
मानवता तोडनेवाली
अमानवीय आकृत्य क्या है!?
दलितों पर ...!
हजारों सालों से यही तंतु
मारना -पीटना,छीनना-शोषण करना..!
धर्म को छोडना नहीं..!
मेरे धर्म में ही रहना ..!
मगर मंदिर में न आना,
भगवान मेरा है !
मंदिर में घुस मत आओ,
स्वतंत्र का नाम लेते..
संविधान की बात करते ।
जल जाओगे ,भूल न जाना ।
भगवान ने मुझे दिया ..
धर्म की रक्षा करने का ,
तुम्हारे भक्षण का अधिकार ।
मैं स्वामी ,दास तुम हो..
श्रम तेरा ,फल मेरा ।
भाग्यवाद का,कर्म सिद्धांत का
ये छल ,कपट है तेरा ।
शांति जप ओठों पर
मनुष्य के रक्त माँस खाते हो
राक्षस से भी हीन होकर ।
जंतु खाते ये मेरे शूद्र जाति
नित्य इनके श्रम का
वो माँस ही शक्ति है ,
इनको छोडके करते कैसे शारीरिक श्रम !?
नीच कार्य का वो पीडा
मदिरा के बिना दूर होता कैसे !?
यह अनादि का आदत उनका
तूने बनाया ऐसा दास
दिमाग लेके सोचो ,
पलटो अपने कुटिल इतिहास ।
बदलेंगे अपने -अपने काम
छोड देंगे ये नीच कार्य
बाबा ने कभी कहा न ?
तुम से बढकर होवेंगे शुद्ध-परिशुद्ध
निष्ठा से पूर्ण शाखाहारी ।
समझना इंसान को
देखना उनके कार्य की महानता को ।
अगर वो नीच कार्य छोड दे
देखो असला जीवन तुम्हारा
कुत्ता भी श्रेष्ठ दिखाई देगा ।
ये सच की बात है,
जीवन मर्म की बात ।
कहीं अपने ऊपर छाया पडी ।
अनुनित्य हमारे समाज में
मानवता तोडनेवाली
अमानवीय आकृत्य क्या है!?
दलितों पर ...!
हजारों सालों से यही तंतु
मारना -पीटना,छीनना-शोषण करना..!
धर्म को छोडना नहीं..!
मेरे धर्म में ही रहना ..!
मगर मंदिर में न आना,
भगवान मेरा है !
मंदिर में घुस मत आओ,
स्वतंत्र का नाम लेते..
संविधान की बात करते ।
जल जाओगे ,भूल न जाना ।
भगवान ने मुझे दिया ..
धर्म की रक्षा करने का ,
तुम्हारे भक्षण का अधिकार ।
मैं स्वामी ,दास तुम हो..
श्रम तेरा ,फल मेरा ।
भाग्यवाद का,कर्म सिद्धांत का
ये छल ,कपट है तेरा ।
शांति जप ओठों पर
मनुष्य के रक्त माँस खाते हो
राक्षस से भी हीन होकर ।
जंतु खाते ये मेरे शूद्र जाति
नित्य इनके श्रम का
वो माँस ही शक्ति है ,
इनको छोडके करते कैसे शारीरिक श्रम !?
नीच कार्य का वो पीडा
मदिरा के बिना दूर होता कैसे !?
यह अनादि का आदत उनका
तूने बनाया ऐसा दास
दिमाग लेके सोचो ,
पलटो अपने कुटिल इतिहास ।
बदलेंगे अपने -अपने काम
छोड देंगे ये नीच कार्य
बाबा ने कभी कहा न ?
तुम से बढकर होवेंगे शुद्ध-परिशुद्ध
निष्ठा से पूर्ण शाखाहारी ।
समझना इंसान को
देखना उनके कार्य की महानता को ।
अगर वो नीच कार्य छोड दे
देखो असला जीवन तुम्हारा
कुत्ता भी श्रेष्ठ दिखाई देगा ।
ये सच की बात है,
जीवन मर्म की बात ।
Comments
Post a Comment