मैं कौन हूँ

मैं कौन हूँ

मैं जिस समाज में हूँ ,वही मैं हूँ ।
मेरे विचार ,मेर चिंतन
मेरे समाज से भिन्न कैसे हो सकता है ।
श्रेष्ठ समाज की कल्पना में
डुबकी लगाता हूँ मैं ।
मैं समाज का भाग हूँ ,
कभी भी पराया नहीं ।
याद आती हैं ये पंक्तियाँ मुझे ।
लाली हे मेरी लाली जित देखो तित लाली ।
लाली देखन मैं गयीं मैं भी हो गयी लाली ।।

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