स्त्रियों के बारे में कहा गया है
स्त्रियों के बारे में कहा गया है
पुरूरवो मा मृता माप्र पप्तो,
मा त्वा वृकासो अशिवास उक्षन् ।
न वै स्त्रैणानि सख्यानि सन्ति ,
सालावृकाणां हृदयानयेता ।।
ऋग्वेद संहिता के दसवें मंडल ,15 वाँ सूक्त ,ऋक 15
में स्त्रियों के बारे में कहा गया है कि स्त्रियों के द्वारा किये गये स्नेह -प्रधान रूप ,कदापि सुखकारी नहीं होते हैं क्योंकि दुष्ट स्त्रियों के क्रूर हृदय ,जंगली कुत्तों के हृदय के समान घातक होते हैं।
हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभानेवाली स्त्री के प्रति इस तरह का हेय व नीच दृष्टि से देखनेवाले वेदों का ज्ञान कितना महत्वपूर्ण हम मान रहे हैं ! हमारे धार्मिक जीवन में इस तरह के भेदभाव से मनुष्य भगवान का स्थान किस तरह प्राप्त कर सकता है ! वेद पाठी जो अहं ब्रह्मस्मि का वचन करनेवाले अपने बढप्पन दिखाने तरह रहकर अहं की उस नीचेवाली सीढी पर ही रह जायेगा । मनुष्य को मनुष्य की तरह न देखनेवाली हमारी परंपरा में देवता के रूप में कैसे देखेगा !
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