मेरे जीवन की कोयल रानी

मेरे जीवन की कोयल रानी

मेरे जीवन की कोयल रानी
मधुमय गीत कूकती नहीं
नीरस जिंदगी की पीडा से
रौंदे स्वर में कराहती
आशाओं के कगार पर बैठी
अपने भीगे तन को निहारती
मही पर अपनी दलित जाति की
कुचला करूण कहानी याद करती
काल की कठोर व्यवस्था के
स्वार्थ जाल की जंजीरों में
जान चली गयी कितनी रे!
अनंत मनोपटल पर चलती
मानचित्र की रेखाएँ चौंकाती
रक्त चूसनेवाले शास्त्र रूप से
मन में भयानक काँप पैदा होती
काल की कठोर अवस्था के
अपना कुछ करना सोचती करती
जीना यहीं.. डरना नहीं
मरना नहीँ ...विरोध करना सही
गले से स्वर फूटता कहीं
मेरे जीवन की कोयल रानी
मधुमय गीत गाती नहीं ।

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